नेटवर्क के कंपोनेट्स क्या है What are Components of Network in Hindi
जब दो या दो से अधिक लोग एक दूसरे से संपर्क में आकर बातें करते हैं तो उसे नेटवर्क कहा जाता है, ये कम्युनिकेशन बोलकर, लिखकर इत्यादि किसी भी प्रकार से हो सकता है, अगर कंप्यूटर में बात करें तो ये इंटरकनेक्टेड कंप्यूटरों का नेटवर्क है जिसके जरिए वो फाइलें, डाटा इत्यादि को एक दूसरे के साथ शेयर करते हैं, ये कंप्यूटर एक दूसरे से केबल के जरिए भी कनेक्ट हो सकते हैं या फिर वायरलेस भी हो सकते हैं
नेटवर्क के कंपोनेट्स क्या है What are Components of Network in Hindi
जब कंप्यूटर एक दूसरे के साथ कोई भी डाटा शेयर करते हैं तो वो हार्डवेयर या सॉफ्टवेयर किसी के भी माध्यम से हो सकता है, नेटवर्क के कंपोनेटस कई प्रकार के होते हैं
मॉडेम (Modem)
देखिए Modem दो शब्दों से मिलकर बना है Mo और Dem जहां Mo का मतलब Modulation से होता है और Dem का मतलब Demodulation से होता है, Modulation से डिजिटल सिग्नल को एनालॉग सिग्नल में बदला जाता है और Demodulation में एनालॉग सिग्नल को डिजिटल सिग्नल में बदला जाता है तो कह सकते हैं Modem एक ऐसा डिवाइस है जो डिजिटल सिग्नल को एनालॉग सिग्नल में और एनालॉग सिग्नल को डिजिटल सिग्नल में बदल देता है
मान लीजिए यूजर के पास दो Computer है एक A है और दूसरा B है ये आपस में कम्यूनिकेशन कर रहे हैं, अब ये तो सभी जानते हैं कि Computer में जो भी डाटा होता है वो बाइनरी फॉर्म में होता है वो या तो 0 की फॉर्म में होता है या फिर 1 की फॉर्म में होता है और मान लीजिए दोनों Computer के पास जो डाटा है वो डिजिटल फॉर्म में है क्योंकि कोई भी Computer डिजिटल फॉर्म को ही सपोर्ट करता है
A और B Computer ने टेलीफोन कनेक्शन किया है और यहां पर जो ट्रांसमिशन मीडियम होता है वो एनालॉग सिग्नल को सपोर्ट करता है तो कंप्यूटर A में जो भी डाटा होगा वो डिजिटल फॉर्म में और Computer B में जो भी डाटा होगा वो एनालॉग में होगा, अगर यूजर Computer A से B में सिग्नल भेजना चाहता है तो Modem की आवश्यकता होगी जो डिजिटल सिग्नल को एनालॉग सिग्नल में बदल देते हैं
Modem के जरिए डाटा ट्रांसमिशन मीडियम तक पहुंच जाता है, अब B सिस्टम से पहले Modem लगाना होगा जो एनालॉग सिग्नल को डिजिटल फॉर्म में बदल सकें, बिना Modem की मदद के Computer A Computer B के साथ कम्यूनिकेट नहीं कर सकता, Modem दो प्रकार के होते हैं एक इंटरनल Modem होता है जो डिवाइस के अंदर इनबिल्ड रहता है और दूसरा बाहरी Modem होता है जो किसी भी डिवाइस में बाहर से लगाया जाता है, इंटरनल Modem Computer की पावर का इस्तेमाल करता है
हब (Hub)
Hub को Repeater भी कहा जाता था क्योंकि यह पीछे से आने वाले सिग्नलों को दोबारा से बनाते हैं और उन्हें डेस्टिनेशन तक पहुंचाते हैं, जब भी कोई सिग्नल Hub के पास आता है तो सिग्नल में कुछ न कुछ लोस होता है तो हब उस सिग्नल को फिर से उसी कंडीशन में लाता है जिस कंडीशन में सोर्स से आया है और उसे दोबारा से बनाकर डेस्टिनेशन तक भेज देता है, इसलिए इसे Repeater भी कहा जाता है
Hub में बहुत सारे पोर्ट होते हैं ये उसी प्रकार होते हैं जैसे घरों में एक्सटेंशन का इस्तेमाल किया जाता है जिसके जरिए बहुत से डिवाइस को एक साथ चला सकते हैं, Hub का काम किसी सिंगल नेटवर्क सेगमेंट को मल्टीपल नेटवर्क सेगमेंट में बदलने का होता है, अगर किसी पर्सनल डाटा को किसी एक खास सिस्टम पर भेजना है तो Hub के जरिए नहीं भेज सकते क्योंकि यह उस डाटा को उन सभी सिस्टमों को भेज देता है जो उससे लिंक होते हैं, इसलिए Hub का इस्तेमाल बंद कर दिया गया है
Hub Half Duplex होता है मतलब इसमें एक सिस्टम एक बार में या तो सिग्नल भेज सकता है या फिर उसे रिसीव कर सकता है, हब दो प्रकार के होते हैं एक पैसिब Hub होता है इसे बाहरी पावर कनेक्शन की आवश्यकता नहीं होती और न ही ये सिग्नल को बना पाते हैं और दूसरा एक्टिव Hub होता है जिसे बाहरी पावर की आवश्यकता होती है और ये सिग्नल को फिर से बना पाता है
स्विंच (Switch)
नेटवर्क Switch एक ऐसा नेटवर्किंग डिवाइस है जो दूसरे Computer को या नेटवर्क डिवाइसों को आपस में जोड़ता है, इसे मल्टीपोर्ट ब्रिज नेटवर्क भी कहा जाता है और ये दो लेयर का होता है और यह OSI Model पर काम करता है, लेकिन आजकल ऐसे Switch भी मिलते हैं जो लेयर 3 पर काम करते हैं ऐसे Switch को लेयर 3 स्विच या मल्टीलेयर Switch भी कहा जाता है
Switch का काम बहुत सीधा है ये पोर्ट के ऊपर मैसेज को रिसीव करता है और केवल उसी डिवाइस को ट्रांसमिट करता है जिस डिवाइस को मैसेज भेजा जाता है, ये Hub की तरह नहीं है क्योंकि Hub जब अपने पोर्ट पर डाटा को रिसीव करता है तो वो उसे बहुत सारे कनेक्टेड डिवाइस को भेज देता है पर Switch केवल उसी को डाटा भेजता है जिस डिवाइस को वह डाटा भेजा गया है
सभी LAN में यह नेटवर्क बहुत जरूरी बन गया है, अगर मिड से लार्ज साइज लैन में देखें तो बहुत सारे Switch मिलेंगे जो आपस में एक दूसरे से जुड़े होते हैं कहने का मतलब Switch लोकल एरिया नेटवर्क का पार्ट हो गया है इसके बिना लैन के बारे में सोच भी नहीं सकते हैं
मान लीजिए कि किसी नेटवर्क में चार Computer A B C D लगे हुए है इन चारों Computer में से मान लीजिए A Computer B Computer को डाटा ट्रांसफर करता है इसी तरीके से B भी A को डाटा ट्रांसफर कर सकता है, ये जो कम्युनिकेशन होता है वो केवल A और B के बीच में होता है अगर C और D कम्युनिकेशन करना चाहते हैं तो वो भी आसानी से कर सकते हैं, ये दोनों ही कम्युनिकेशन अलग-अलग होते हैं और एक दूसरे एक साथ इंटरफेयर नहीं करते हैं
ये यूजर को हाई स्पीड डाटा एक्सेस देते हैं, ये Full Duplex कम्युनिकेशन प्रदान करते हैं, इसमें डाटा एक जगह से दूसरी जगह तक पहुंचने में बहुत कम समय लेता है, स्विच के जरिए पॉइंट-टू-पॉइंट कम्युनिकेशन कर सकते हैं क्योंकि इसमें सेंडर का डाटा डायरेक्ट रिसीवर तक पहुंच पाता है
राउटर (Router)
Router एक ऐसे Computer को बोला जाता है जो दो या दो से ज्यादा नेटवर्क को आपस में जोड सकता है इसलिए Router को Internet वर्किंग डिवाइस भी कहा जाता है, ये एक ऐसा Computer है जो इस तरीके से डिजाइन किया गया होता है कि वह केवल राउटिंग का काम ही कर पाएं,अपने Computer को भी राउटर की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है लेकिन इन Router को Software Router कहा जाएंगा और इन्हें हार्डवेयर Router से कंपेयर करें तो Software Router काफी स्लो होंगे
Router में एक ऑपरेटिंग सिस्टम या सॉफ्टवेयर होता है जिसकी मदद से Router डाटा को एक नेटवर्क से दूसरे नेटवर्क में भेजता है, अपनी मदद के लिए यह टेबल बनाता है इस टेबल को Routing Table कहा जाता है और इस टेबल की मदद से डाटा को एक नेटवर्क से दूसरे नेटवर्क तक भेजता है, ये OSI की तीसरी लेयर पर काम करता है
अगर दो नेटवर्कों को आपस में जोड़ना चाहते हैं तो आसानी से Router की मदद से कनेक्ट कर सकते हैं अगर ये कनेक्टिविटी लोकल होती है तो इसे LAN Routing कहा जाता है, Router बॉडकास्ट ट्रैफिक को कंट्रोल करता है, आज बहुत सी कंपनी Router का उत्पादन कर रही है जैसे Cisco, Juniper इत्यादि
ब्रिज (Bridge)
नेटवर्क Bridge एक ऐसा डिवाइस है जो बहुत से नेटवर्क सेगमेंट को जोड़ने के काम में आता है, इसमें इतनी क्षमता होती है कि ये यूजर के डाटा को फिल्टर कर सकें, ये लेयर दो के OSI के मॉडल पर काम करते हैं, Bridge का मुख्य काम यह है कि ये लाइन सेगमेंट में ट्रैफिक की समस्या को काफी हद तक सही कर देता है क्योंकि ये नेटवर्क को दो सेगमेंट में बांट देता है और जब लाइन सेगमेंट दो हिस्सों में बट जाता है तो एक तरफ का डाटा लेयर 2 पर दूसरी साइड पर नहीं जा पाता है
इसकी जरूरत इस वजह से पड़ी क्योंकि जब पहले सिस्टम बस Topology से जुड़े होते है और अगर एक सिस्टम 1 है जो सिस्टम 7 को डाटा भेजना चाहता है तो वो डाटा उनके बीच जितने सिस्टम होते थे उन सभी सिस्टमों में डाटा फ्लो कर जाता था, इसके बाद नेटवर्क Bridge को बनाया गया जिसके नाम से ही पता चलता है कि ये एक Bridge का काम करता है अगर कोई डाटा एक साइड से दूसरी साइड में भेजना होता और वो सिस्टम अगर Bridge के दूसरी साइड में है तो ये उस डाटा को जाने देता है अगर वो सिस्टम उस साइड में नहीं है तो वो डाटा को वही पर रोक देता
नेटवर्क Bridge ऐसा डिवाइस है जो बहुत सारे नेटवर्क सेगमेंट से मिलकर बनता है तो इस तरीके से नेटवर्क Bridge काम करता है
गेटवे (Gateway)
Gateway एक हार्डवेयर डिवाइस है ये दो अलग-अलग तरह के नेटवर्क को आपस में जोड़ता है, ये किसी भी डाटा को Internet के माध्यम से भेजता है और रिसीव करता है, ये लैन नेटवर्क से भी डाटा को भेजता है और रिसीव करता है, ये ओएसआई मॉडल के सात लेयर को ऑपरेट करता है
बिना Gateway के Internet पर एक्सेस नहीं कर सकते, ये सिक्योरिटी भी प्रदान करता है, इसे हर कोई व्यक्ति नहीं खरीद सकता है क्योंकि यह बहुत महंगा है, इसमें डाटा बहुत धीमी गति से सेंडर से रिसीवर तक जाता है
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