डीएसएलआर कैमरे की सेटिंग कैसे करें What are Setting of DSLR Camera in Hindi
आज के समय में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो कैमरे के बारे में न जानता हो इन्हीं में डिजिटल कैमरा मानवता के महान आविष्कारों में से एक है जो इंसान को यह बताता है कि किसी भी चीज की इमेज कैसी होगी जो कुछ समय पहले क्लिक की है पर DSLR कैमरा चलने के लिए उसके अंदर कौन-कौन सी प्रोसेस होती है
डीएसएलआर कैमरे की सेटिंग कैसे करें What are Setting of DSLR Camera in Hindi
White Balance
White Balance के बारे में बात करने से पहले यह जान लें कि कूल, न्यूट्रल और वार्म क्या होता है, अगर कोई तस्वीर नीली दिखाई देती है तो उसका मतलब है कि वह कूल है, अगर कोई तस्वीर लाल या ऑरेंज रंग दिख रही है तो वह वॉर्म होती है पर अगर कोई तस्वीर में कोई रंग नहीं है तो उसको न्यूट्रल कहा जाता है तो अब सवाल यह आता है कि जब भी कोई तस्वीर खींची जाती है तो उसमें ये रंग आ कैसे जाते हैं
देखिए हमारे वातावरण में आसपास कई तरह की लाइट होती है, हर समय पर लाइट बदलती रहती है जिससे लाइटों का फर्क इमेजों पर भी पड़ता है तो वह कभी वार्म और कभी कूल हो जाती है क्योंकि कैमरे को यह समझ नहीं आता है कि इन तस्वीरों को न्यूट्रल कैसे बनाना है, अब यह जानना जरूरी है कि हर कैमरे की कलर टेंपरेचर सेटिंग लगभग 2500 Kelvin से लेकर 10000 Kelvin तक होती है
जब भी फोटोग्राफी की जाती है तो केवल इतना याद रखना होता है कि जितना कलर टेंपरेचर कम होगा उतनी ही इमेज उतनी कूल आती हे और जितना टेंपरेचर ज्यादा होता है उतनी ही इमेज वार्म होती जाती है
जो लाइट बिल्कुल सफेद होती है वो 2500 केल्विन से 10000 केल्विन के बीच में पडती है, ऐसा माना जाता है कि Pure Day Light 5600 Kelvin की होती है, अगर तस्वीरों को अलग दिखाना है तो White Balance को सेट करना बहुत जरूरी होता है
वैसे तो हर कैमरे में यह सहूलियत होती है कि यूजर जिस तरह की लाइट के नीचे सूट करना चाहता है वैसी ही वह सेटिंग कर सकता है इससे इमेज न्यूट्रल आती है इसके लिए कई तरह की सेटिंग याद रखनी होती है इसे याद रखना थोड़ा मुश्किल है इसलिए सही White Balance करने का सबसे आसान तरीका कस्टम या प्रीपेड वाइट बैलेंस करना होता है
कस्टम वाइट बैलेंस का मतलब है कि कैमरा को खुद बताते हैं कि यह वाइट है और कैमरा बाकी रंगों को अपने आप Adjust कर लेता है, हर तरीके के कैमरे में इसे करने का एक ही तरीका होता है, इस तरीके से कैमरे में व्हाइट बैलेंस को Adjust कर इमेज काे और भी अच्छा बनाया जा सकता है
Shutter Speed
शटर को खुलने और बंद होने की स्पीड को शटर स्पीड कहा जाता है, इसे सेकंड में या फिर Fraction सेकेण्ड में मापा जाता है, ज्यादातर कैमरों में ज्यादा से ज्यादा शटर स्पीड 1/8000 या 1/4000 होती है और कम से कम 30 सेकंड तक होती है, ये इस बात पर निर्भर करता है कि यूजर कौन सा कैमरा इस्तेमाल कर रहा है
जब शटर स्पीड को स्लो सलेक्ट किया जाता है और अगर Subject फ्रेम में घूम रहा है तो हर तरह का मूवमेंट उस फोटो में कैप्चर हो जाएगा, फास्ट शटर स्पीड इस्तेमाल आमतौर पर तब किया जाता है जब किसी सब्जेक्ट को फ्रिज करना होता है या फिर लाइट ज्यादा हो तो फास्ट शटर स्पीड का इस्तेमाल करना होता है जिससे लाइट अंदर कम आती है
शटर स्पीड कैसे ऑन करनी है तो इसके लिए जो याद रखने वाली बाते हैं उनमें
- Nature of Light - पहला है कि जब सूट कर करते हैं तो ये देखना होता है कि यूजर के आसपास कितनी लाइट है, मान लीजिए अगर दिन में 2 बजे सूट करते हैं तो उस समय फास्ट शटर स्पीड का ही इस्तेमाल करना होगा क्योंकि उस समय लाइट बहुत ज्यादा होती है
- Nature of Subject - मान लीजिए अगर किसी रुकी कार की इमेज लेनी है और कार तकरीबन 60 की स्पीड में चल रही है तो वहां स्लो शटर स्पीड का इस्तेमाल करना होगा क्योकि अगर फास्ट शटर स्पीड का उपयोग किया जाएंगा तो उसकी फोटो बहुत गंदी आएगी और वो चलती हुई भी दिखाई देगी
- ISO - ISO एक्सपोजर ट्रायंगल का एक एलिमेंट है जिसकी मदद से किसी भी इमेज में एक्सपोजर को Adjust किया जाता है, फोटोग्राफी में एक्सपोजर तीन चीजों पर निर्भर करता है शटर स्पीड, अपर्चर और आईएसओ
आईएसओ किसी भी इमेज को सूट करते समय यह बताता है कि कैमरा कितना Sensitive है, जितना आईएसओ ज्यादा होता है उतनी ही लाइट फोटो में बढती है
आईएसओ का इस्तेमाल आमतौर पर दो जगह किया जाता है
- अगर फोटो खींचते समय लाइट बहुत कम हो तो वहां आईएसओ का इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि बिना आईएसओ के बढ़ाये जाने से इमेज डार्क नहीं आएगी जिससे एक्सपोजर बराबर हो जाएगा
- अगर स्लो शटर स्पीड की वजह से इमेज शेक हो रही हो तो आईएसओ को बढाना होता है जैसे मान लीजिए अगर कोई व्यक्ति किसी चाल से चल रहा है तो शटर स्पीड को बढ़ाना होगा ताकि चलते हुए व्यक्ति की स्पीड से मैच किया जा सकें जिससे इमेज में लाइट कम हो जाएगी इसलिए आईएसओ को बढाना होगा
Slow Motion Video
जब कई इमेज आंखों के सामने प्ले की जाती है तो Persistence of Vision की वजह से ऐसा लगता है जैसे वो इमेज मूव कर रही है इसी को वीडियो कहा जाता है, किसी वीडियो को स्मूथ लूक देने के लिए मिनिमम फ्रेम रेट 24 फ्रेम पर सेकंड देना होता है इसलिए फिल्म्स 24 फ्रेम पर सेकंड पर सूट होती है अगर फ्रेम को इससे कम कर दिया जाएं तो मूवमेंट बहुत गंदा लगता है जैसे पुरानी फिल्म्स में दिखता था
इसमें शटर स्पीड का भी ध्यान रखना होगा जो भी फ्रेम रेट रखे शटर स्पीड को हमेशा उससे दो गुना ज्यादा रखें अगर शटर स्पीड दो गुना नहीं होगी तो Motion Blur बिल्कुल भी Natural नहीं लगेगा, जब भी कोई वीडियो सूट किया जाता है तो बडे लेंस वाले अपर्चर की जरूरत होती है
इसमें सबसे पहले अपने कैमरे को वीडियो मोड में ले जाना होगा इसके बाद Menu बटन पर क्लिक करना होगा, आपकोअपने वीडियो को 48 फ्रेम पर सेकंड पर ले जाना होगा इसके लिए फंक्शन सेटिंग में जाना होगा और वहां पर वीडियो सिस्टम पर PAL करना होगा
ये सब सेटिंग करने के बाद बस वीडियो सूट करना होगा और फिर किसी भी सॉफ्टवेयर में जाकर वीडियो को स्लो मोशन कर सकते हैं, हर तरह के सॉफ्टवेयर में स्लो मोशन का ऑप्शन जरूर होता है
Pixels
अगर कोई कहता है कि जितनी ज्यादा मेगापिक्सल होगी उतना ज्यादा अच्छा कैमरा होगा तो ऐसा नहीं है, देखिए हर तरह के कैमरे का मेगापिक्सल अलग-अलग होता है और अगर फोन की बात करें तो उनका साइज बहुत छोटा होता है जिससे उनका सेंसर भी बहुत छोटा होता है तो इमेज बहुत छोटी बनती है
वहीं अगर DSLR कैमरे को देखें तो उसके लेंस का साइज काफी बडा होता है जिसकी वजह से उसका सेंसर भी बडा होता है तो इमेज भी बडी और अच्छी क्वालिटी की बनती है, जिसकी वजह से इमेज फोन से लेते हैं तो वो उतनी अच्छी नहीं आती है जितनी DSLR कैमरे से आती है
Focus
Focus का मतलब है जैसे जब किसी चीज की इमेज लेने के लिए उस पर कैमरा लाते हैं और स्क्रीन को लॉक करते हैं तो इमेज में केवल वही पॉइंट साफ आते हैं जिनको लॉक किया बाकि उसके पीछे का बैकग्राउंड साफ नहीं आता है
जब फोटो खींचने के लिए बटन दबाते हैं जैसे ही आधा दबता है तो कैमरे में कुछ एरिया में लाल या हरे रंग के Square दिखाई देते हैं वो कैमरा यह बताता है कि फोकस पॉइंट लॉक हो चुके हैं इसमें भी तीन तरह के फोकस होते हैं
- Linear Vertical Focus Point - जब कैमरा किसी ऐसी चीज पर फोकस करता है जो सीधी होती है तो वहां फोकस नहीं हो पाता है वहां इमेज खराब आती है और फोकस नहीं बन बन पाता पर अगर Horizontal लाइन पर फोकस करते हैं तो वहां आसानी से फोकस हो जाता है
- Dual Focus Point - इनको वर्टिकल और होरिजेंटल का मिक्स कहा जाता है ये आसानी से Vertical and Horizontal इमेज पर फोकस बना लेता है
- Cross Focus Point - Cross Focus Point जब भी किसी चीज पर फोकस किया जाता है वो क्रॉस की तरह करता है जिससे आसानी से कोई भी इमेज फोकस में आ जाती है
Aperture
ज्यादातर लोग यह सोचते होंगे कि अपर्चर कैमरे में होता है पर ऐसा नहीं होता है क्योंकि अपर्चर लेंस के अंदर होता है, देखिए जब कोई भी इमेज ली जाती है तो ये लेस डिसाइड करता है कि कैमरे में कितनी लाइट जानी है
जब कैमरे की ओपनिंग चेज होती है वो अपर्चर की वजह से होती है, कैमरे में अपर्चर की वेल्यू का सेट करना होता है और अगर ऑटो पर सूट करते हैं तो कैमरा डिसाइड करता है, ये अपर्चर वेल्यू ही होती है जो डिसाइड करती है कि अपर्चर कितना बडा या कितना छोटा रहेगा, देखिए जितनी अपर्चर वेल्यू ज्यादा होगी उतना अपर्चर छोटा होता जाएगा और जितनी अपर्चर वेल्यू कम होगी उतना अपर्चर ज्यादा खुलेगा, इस तरह से इमेज अपर्चर की वजह से साफ आती है
आशा है DSLR कैमरें की सेटिंग के बारे में आज जो जानकारी दी गई हैं वह आपको जरूर पसंद आई होगी अगर हां तो अपनी राय कमेंट सेक्शन में जरूर बताएं धन्यवाद
Comments
Post a Comment